Sunday 7 November, 2010

ओह ! तो यहाँ है भगवान्

एक दिन कि बात है -

जब भगवान्  काफी थका हुआ महसूस कर रहे थे  कारण ये था कि वे अब लोगों कि इक्षाओं कि पूर्ति करते-करते परेशान हो गए थे .
फिर एक दिन तंग आ कर उन्होंने कुछ नया करने का सोचा.
वे अपने सलाहकार से बोले -
     "हे सलाहकार जी ! में अब तंग आ गया हूँ ये मानव प्रजाति मुझे परेशान किये हुए है ; कोई मुझे कहीं से बुलाता है तो कोई कहीं से     पूर्व  से आवाज आती है तो कहीं पश्चिम से ,एक ख्वाहिश पूरी कर नहीं पाता कि दूसरी अर्जी आगे आ जाती है,
    में अब अपने आप को भी समय देना चाहता हूँ , तो मैंने सोचा है कि अपना ब्रह्माण्ड काफी बड़ा है उसमे अभी भी बहुत खाली जगह है
जहां मानव कभी नहीं पहुँच सकता तो क्यों न वहीं पर डेरा जमाया जाये."
  
  इस पर से सलाहकर बोले - "नहीं नहीं , ये आप क्या कह रहे है , आप तो जानते ही है कि इंसानों कि महत्वाकांक्षा वहुत प्रबल है  वे अब पृथ्वी के बाहर कदम रख चुके है  और आप कहीं भी चले जाईये वे वहाँ तक कभी न कभी पहुँच ही जायेंगे ,और आप हर जगह ही भीड़ का अनुभव करेंगे."

 तब भगवान बोले -"तो फिर क्या इस समस्या का कोई हल नहीं है "

 सलाहकार बोले -"हल तो है श्रीमान! और बहुत सरल है आप को कुछ और न करके सिर्फ इतना ही करना है  आप अपना निवासस्थान कही और न बना के खुद मानव  के अन्दर ही बना ले , क्योंकि मानव कहीं भी चला जाये वो कभी भी अपने अन्दर झाँकने कि  कोशिश नहीं करना चाहता है  और  इस सारी कायनात में  वही एक इकलौती जगह है जहाँ आप खुश रह पायेंगे  "
        
फिर क्या था भगवान् ने वैसा ही किया, और आपको बड़ा अचम्भा होगा ये जानकर  कि भगवान् तब से लेकर अब तक  वहीँ पर है और बहुत खुश भी है ,वैसे तो वहाँ कोई पहुँचता नहीं और यदि वहुत ही दुर्लभ कोई कभी पहुँच भी जाता है तो भगवान् उसे अपना मित्र बना लेते हैं .

1 comment:

Postcard said...

बहुत ही सही लिखा है रूपम जी , भगवान् के छुपने के लिए इंसान के अंतर से अच्छी जगह हो ही नहीं सकती थी | आपकी शैली आची है , लिखते रहिये .....