Tuesday 13 January, 2015

शाश्वत क्या है?

अगर डार्विन के विकासवाद पर ध्यान दें या फिर खुद अपने बचपन से अब तक के सफ़र को देख लें; तो हमें ज्ञात हो सकता है कि हम अपने अनुभव के आधार पर बदलाव लाते हैं, सीखते हैं और आगे का सफ़र जारी रहता है, इस यात्रा में दिमाग हमारा सहयोगी बन जाता है। यही है परिवर्तन, जो काम का है उससे काम लें और जो बेकाम हो चुका उसे वहीँ छोड़ आगे बढ़ते चलें, निरंतर और निरंतर उन्नयन की ओर। ये प्रवाह है, यहाँ आसानी है सहजता है, और ये प्राकृतिक भी है। इस कायनात में हम कभी ऐसा नहीं देखते की कुछ ठहरा हुआ है, और जो ठहर गया उसे हम मृत मानते हैं। जो भी एक स्थान पर ठहरा वो मर गया समझिए। 
      पर जब भी बात नयेपन, सभ्यता और संस्कृति की आती है तो लोग वही घिसा-पिटा राग आलापने लगते हैं। हम श्रेष्ठ हैं हमारी संस्कृति श्रेष्ठ है; जो पहले कभी घट गया वही शाश्वत है। क्या कभी ये नहीं लगता की हम बहुत ही बचकानी बात कर रहे हैं। क्योंकर हम प्रकृति की खिलाफत कर रहे हैं। जो कभी था; वह अब नहीं हैं, उस समय वो ठीक होगा; पर आज कहाँ उसे घसीटे फिर रहे हो, क्या फायदा होगा। आज के तो सर्वेसर्वा तुम खुद हो; तुम खुद ही लिखो ना आज की परिभाषाएं। जिम्मेदारी पूरी करो नए शोध करो; गढ़ो जैसा गढ़ना चाहते हो आज का युग। हाँ अनुभव के तौर पर पुराने को देख सकते हो; उससे नया कैसे आएगा, ये सोच सकते हो युवा पीढ़ी को हम भविष्य कहते हैं, और उसी के नयेपन को हम नकार देते हैं, ये कैसे तौर-तरीके अपना रखे हैं। आगे देखना आवश्यक है यदि चोट खाने से बचना चाहते हो तो। 

चल भाई! कुछ आगे बढें; अभी दूर तलक जाना है।
बहुत सराहा पुराने को, अब कुछ और भी बनाना है।

बीबीसीहिंदी की पोस्ट में अपने आप को तलाशने की कोशिश करें; जो नीचे की लिंक से शेयर की गयी है। 
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2015/01/150113_india_ancient_vs_modern_rns

No comments: