Friday 2 April, 2010

मानवता का बलात्कार या संस्कृति की रक्षा .

भाई बात कुछ इस तरह है की बहुत दिन हो गए जमाना अपनी रफ्तार में आगे बढा जा रहा है और हम हैं की लाइफ में कोई ट्विस्ट ही नहीं। ॥ कोई काम भी नहीं है और अन्दर दिल में बैठी कुंठित उर्जा जवानी में कुछ कर गुजरने के लिए कह रही है,कोई मुद्दा भी नहीं मिला की तोड़ फोड़ की जाये और लोगों की नजरों में आने का मौका मिले.

ये मनोदशा है,कुछ ऐसे युवाओं की जिनके समक्ष तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर संस्कृति रक्षा जैसे कार्यों में लगा दिया जाता है ताकी वे सोचें की हिंसा फैला कर वे अपना उद्धार कर रहे है.

जरूरी नहीं धर्म कौन सा है ,आतंकवाद हो या दंगा शब्द अलग पर बात एक ...कुल मिला कर हिंसा ,चाहिए क्या ...बस खून-खराबा, नहीं मालूम की कारण क्या है, अब कारणों का क्या वो तो नेताजी बता ही देंगे.

देश आतंकवाद से बुरी तरह जूझ रहा है, और आतंकवाद ही क्यों कई और भी जैसे नक्सलवाद।
समाधान को लेकर सब परेशान है, मगर समाधान हो भी तो कैसे... कौन है यहाँ पर सही... लोग मालूम ही नहीं करना चाहते की वे खुद ही इन सब समस्याओं का कारण है, आखिर मूल है क्या वही धर्म,वही जातिवाद जिसे लोग सीने से लगाये बैठे है, जबरदस्ती ही हम खुद को जंजीरों में जकडे हुए है,और आने बाले युवा को व्यर्थ ही प्राचीनता की तरफ धकेल कर अपने जैसा बना लेते है

गलती उस युवा की नहीं जो हिंसा में लिप्त है... गलत है धार्मिकता के नाजुक से परदे में छिपा कट्टरवाद ,हर बच्चा ये सीखता है, की उसका धर्म गलत नहीं है ...गलत तो और धर्मों के लोग है. बस यही एक मात्र कारण है.

हिंदुस्तान .... धर्म निरपेक्ष पर कैसे कहूं इसे धर्म निरपेक्ष। यहाँ किसी को आतंकबादी का दर्जा दिया जाता है तो किसी को नक्सलवादी होने का......... सच है की किसी का खून बहाना एक निम्नतम दर्जे का कार्य है

एक और भी है जो हिंसा फैलाने पर देशभक्त की उपाधि पाते है ,ये कुछ मुट्ठीभर हिंदूवादी संगठन के कुछ गुंडा तत्त्व जो हिन्दुवाद , रामराज्य के नाम पर खून-खराबा करते है ये वही लोग हुआ करते है जो लड़कियों से बदतमीजी करने के लिए जाने जाते है और वैलेंटाइन-डे पर भारतीयता की दुहाई देकर औरों की स्वतंत्रता पर नाग की तरह फुफकारते है ।

ये वही लोग हुआ करते है, जो ८४ के दंगों में पंजाबियों को मारकर मनोरंजन करते है,फिर इनकी हाई कमान उसे देश भक्ति का जामा पहना देती है, ये वही लोग हुआ करते है जो हाल ही में हुए दक्क्षिण के दंगों में कई ननों का सार्वजानिक रूप से बलात्कार करते है ,फिर उन्हें जिन्दा जला देते तब शर्म नहीं आती पर समलैंगिकता को लेकर ये शर्मिंदगी महसूस करते है।

मंदिर के नाम पर कई जानें ले ली जाती है और चर्च जलाने में आतिशबाजी का मजा लूटा जाता है ,
अब ऐसा क्यों न हो इन लोगो को राजनितिक संरक्षण जो प्राप्त है

ये कुछ गुंडा तत्त्व फिर एक बढ़ी समस्या को जन्म देते है जो क्षेत्रवाद, आतंकवाद , नक्सलवाद के रूप में सामने आती है ।

अगर समस्या का समाधान चाहिये तो पहले गांधीवाद को समझिये,। तलबार हटाना चाहते है तो आपसी रिश्ते बनाना सीखिए अगर हिन्दू के घर मुस्लमान और मुस्लमान के घर हिन्दू होगा तो हथियार उठाना आसन न होगा . देश को आरती और नमाज की जरुरत नहीं है बल्कि जरुरत है " वसुधैव कुटुम्बकम" को अपने जीवन में उतारने की .
बच्चों को उपनाम के फेर से दूर कर दीजिये वे खुद ही अपना नाम बना लेंगे .

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