Friday 2 April, 2010

मेरी कौन सुनता है

 मरने से पहले एक रपट मे:

नाम :- जो पसंद हो
उम्र :- नब्बे साल मानवीय गड़ना के अनुसार
कार्य :- जीवन को पालना-पोसना
अनुभव :- लगभग जीवन भर
शिकायत का संपूर्ण विवरण (अपनी जुवानी ) :- साहब वैसे तो मैं आपसे कहीं ज्यादा बुजुर्ग हूँ ,मगर चूँकि आप सरकारी अफसर है , तो मुझे साहब ही कहना पड़ेगा

बात कुछ इस तरह है जब मैं नवजात था ,तब मेरा भी एक परिवार हुआ करता था बड़े खुशहाल थे सब के सब ,खाने पीनेकी कोई कमी न थी अचानक एक दिन घोड़ागाड़ी आई कुछ लोग उतरे कुछ खुसुर-पुसुर की और लौट गए

कुछ दिन बाद बे सब के सब आए मैंने देखा ,सभी हथियारों से लेस थे और उन्होंने आते ही हम पर हथियार बरसाने शुरू कर दिए ,सभी स्वजन कुछ ही देर मे ढेर हो गए कमबख्तों लाशों को भी अपने साथ ले गए , मै बेचारा डरा सहमा एक बीमार बुजुर्ग के पीछे छिप कर सब देखता रहा

फिर तो जैसे सारी की सारी दुनिया बीरान सी लगने लगी ,कोई सहारा नही बचा था, पर फिर भी मै तन्हाई को गले लगाकर जीता रहा धीरे -धीरे मेरे दुश्मनों ने मेरे ही आसपास रहना शुरू कर दिया

कहते है बक्त हर घाव को भर देता है ,मैंने सबके साथ दोस्ताना सम्बन्ध बनाने शुरू कर दिए, उनकी भी मेरे साथ घनिष्टता बदती गई ,उनके बच्चे मेरे साथ खेलने लगे और मैं भी उन्हें तरह तरह के तोहफे देता गया , मानों मुझमें नई जीवन तरग उठने लगी लोग मेरे पास बैठ करअपने आपसी झगडे भी निपटा लेते थे ऐसा लगने लगा था मानों मुझे एक बुजुर्ग का दर्जा मिल गया हो

तभी अचानक जैसे समय ने करवट ली हालाकि मेरे पास लोग काफी तादाद मे रहने लगे थे ,पर सन्नाटा छाया रहने लगा , बच्चों ने मेरे साथ खेलना बंद कर दिया ,सब अपने अपने कामों मैं लग गए बस कभी कभी कुछ लोग मेरे पास पूजा पात करने आते थे

एक दिन मैंने सुना की कुछ लोग मुझे मर डालने की योजना बना रहे थे तभी मुझे समझ आया की लोग मेरी नही बरन मेरे पास पड़े एक पत्थर की पूजा करने आते थे अब बे लोग उस पत्थर को धूप और पानी से बचाने के लिए एक छत बनाना चाहते हैं और इसीलिए बे मुझे मर डालना चाहते हैं
मैं चूँकि आपके साथ बचपन मैं खेलता कूदता था ,सो आपको रपट लिखा दी पर मुझे मालूम है की आप भी कुछ नही करेंगे , "क्योंकि मेरी कौन सुनता है"

शिकायत करने बाला
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एक बुजुर्ग पेड़

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