Friday 2 April, 2010

अस्तित्व का अंत कोंन होगा जिम्मेदार !

जीवन ........
बड़ा रहस्यमयी ,बड़ा रोचक सबाल है
जीवन का विकाश किस-किस तरह से होता आया , प्रकिरिती अपने अंदर क्या क्या समेटे हुआ है ,ये सब जान पाना तो एक अंत हीन यात्रा होगी यह सच है की मानव जिस तरह से विकसित हुआ है वह जिस तरह से अपना संरक्षण करता आया है ,कबीले तारीफ है
परअपने आप को बिकसित करते करते हम आज इस सीमा पर आ गए की औरों का अस्तित्व हमारे आसरे का मोहताज हो गया ,मतलब ये आज के समय जो भी प्राणी मानव को आर्थिक सेवायें देता रहेगा जीवन के लिए अधिकारी होगा
जरा सोचें क्या येही न्याय है हमनें अपने विकाश क्रम मैं कई सभ्यताओं ,कई धर्मो, कई व्यवस्थाओं को जनम दिया ,अगर देखा जाए तो कही पर भी गुथियों के सही न्यायिक जबाब मौजूद नही है हमने जब चाहा जैसे चाहा वैसे सबाल खडे किए फिर अपने ही तरह से उनके जबाब दिए, सही हों या ग़लत फर्क नही पड़ता
हमेशा सत्य को नाकारा गया आज रोज कही एक न एक अस्तित्व ख़त्म होने की कगार पर है ,अगर भारत को ले लिया जाए तो एक ज्वलंत उदाहरण हमारा रास्ट्रीय पशु बाघ मरने के लिए समझ लीजिये आतुर है ,और कारन सिर्फ़ इंसानी मांग इंसानी लोलुप्सा अब अगर सभी से पूछे तो बताईये क्या सभी धर्म ,सभी समाजें केवल इंसान को ही जीवित रखना चाहती है किसी और को जीने का कोई हक नही
जो कहीं पूजनीय बताया जाता है किसी न किसी रूप से वह मानव के लिए उपयोग का भी बताया जाता है,
स्वार्थ हर जगह प्रवल है जंगली जीवन अब दम तोड़ चला है ,हमने अन्धादुन्ध उत्पीडन किया है हर चीज आज पैसे से तौली जाती है , सतरंज की विसात है और बाकि सब मोहरे है
सत्य तो यही है सबका अस्तित्व सबकी स्वतंत्रता
पर इसकी चिंता किसे है आज जो भी असंतुलन हो रहा है कारन सिर्फ़ इंसान की भूख है
देखना तो यह है की कब तक इंसान निद्रा में डूबा रहेगा कब तक हम अपने को फैलाते जायेंगे और कब तक दूसरों को संकुचित करते जायेंगे,कहीं ऐसा न हो जाए यह धरती रूपी माँ इसके अस्तित्व को ख़तम करने बालों के अस्तित्व की दुसमन बन जाए और हमारी आने बाली निर्दोष पीडी इस काल का ग्रास बन जाए 

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