ये मेरा स्वयं का मत है कि किसी अमुक की बात का सही अर्थ निकालने हेतु सर्वप्रथम तो उसकी वैचारिक पहचान होना जरुरी है क्योंकि बात के तो कई मतलब निकाले जा सकते हैं | और शायद कई वर्षों से जनता ये गलती करती आ रही कि वे बात के सही मायने नहीं खोज पाते और किसी के भी बारे में अपनी खुद कि धारणा बना लेते हैं |
इसी वजह से हमने कई धोखे खाए हैं और कई बार दुर्लभ और ज्ञानवान लोगों को समझने में हम असफल रहे है|
हाल के ही परिदृश्य में यदि देखा जाये तो पता लग जाता है कि अब भी वही गलती हम दोहरा रहे है ,जैसे कि "जय-राम रमेश जी" (केंद्रीय पर्यावरण मंत्री) को लेकर कहें तो बात ठीक बैठती है| मेरे खुद के नजरिये में जयराम रमेश एक बहुत ही आला दर्जे के व्यक्ति हैं , उनके अन्दर विद्रोह सहज ही देखने को मिलता है और इस तरह का राजनीतिज्ञ वहुत मूल्यवान हो सकता है ,क्योंकि आलोचना जिसे यदि हम कहें सकारात्मक आलोचना कई नए विचारों कि जननी रही है | कोई भी विचार कभी भी पर्याप्त नहीं है ,कभी संपूर्ण नहीं है , समय समय पर विचारों का परिवर्तन अत्यंत ही आवश्यक है |
और फिर खुद जयराम रमेश एक वुद्धिजिवी व्यक्ति हैं उनका आशय हमेशा से विचारों के परिवर्तन और परम्पराओं जैसे आडम्बरों को बदल देना है न कि किसी भी तरह से किसी व्यक्ति और किसी संसथान कि बुराई करना ,
वर्तमान में उनके आई.आई.टी. को लेकर कही गई बातों का मतलब मुझे ये दिखाई पड़ता है कि वे वर्तमान में शिक्षा पद्धतियों को लेकर संतुष्ट नहीं है और शिक्षकों से उनकी वैचारिक रीतियों को बदलने कि बात कर रहे है , न कि किसी भी तरह किसी कि बुराई कर रहे हैं |
उनके द्वारा कहे आलेख से ये जाहिर हो रहा है कि वे जिस तरह से भारतीय संस्थानों कि तुलना विदेशी संस्थाओं से कर रहे हैं उस का मतलब सिर्फ ये है कि हमें शिक्षा के अंतर्गत विदेशी अंदाज में स्वतंत्रता का परिवेश देना चाहिए जिससे कि मौलिक शोध कर पाने कि सुविधा मिल सके |
में खुद भी एक एम्.टेक. विद्यार्थी हूँ और वर्तमान में जो परिदृश्य देखता हूँ वह वेहद ही पारम्परिक है, हम आज भी कुछेक निश्चित विषयों को मान्यता देते हैं और वैकल्पिक विषयों को लेकर कम ही रूचि दिखाते हैं इसके चलते ही भारत मौलिक शोध देने में पीछे दिखाई देता है |
इसीलिए यदि जयराम जी कहते है तो उनका मतलब है कि वैचारिक परिवर्तन किये जाना जरुरी है , इस बात को लेकर हमें पुरे बजट कि तुलना करने कि जरुरत नहीं, न ही किसी भी तरह शिक्षकों कि क़ाबलियत को दर्शाने कि जरुरत है बस हम बात को समझ कर थोडा परिवर्तन करैं ,और वैचारिक परिवर्तन अपने आप ही सुविधाओं के नए मार्ग प्रशस्त कर देते है |
हाँ बात करते करते कभी-कभी व्यक्ति अपनी परिधि छोड़ कर बहार निकल जाता है पर ये इस तरह के आला दर्जे के व्यक्ति हेतु नगण्य हैं और मापने लायक नहीं है |हाँ यदि शब्दों को पकड़ना है तो अभी भी नब्बे प्रतिशत ऐसे नेता है जो कहते कुछ और हैं और करते कुछ और है ,और इस तरह के कागजी शेरों के शब्दों को व्यक्ति पकड़ नहीं पता, जो कि अत्यंत ही नुकसानदायक है |